बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह हर दिन जंगल में जाकर पेड़ काटता और लकड़ियाँ बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पालता। उसकी कुल्हाड़ी ही उसका एकमात्र सहारा थी। वह बहुत ईमानदार और मेहनती था, कभी किसी का नुकसान नहीं करता था।
एक दिन जब वह नदी किनारे एक पेड़ काट रहा था, उसकी कुल्हाड़ी अचानक हाथ से फिसल कर पानी में गिर गई। वह बहुत घबरा गया क्योंकि वही उसकी रोज़ी-रोटी का साधन था। वह बैठकर रोने लगा और सोचने लगा कि अब वह घर कैसे जाएगा। तभी नदी से एक देवता प्रकट हुए और बोले, “तुम क्यों रो रहे हो?”
लकड़हारे ने सारी बात सच-सच बता दी। देवता मुस्कराए और नदी में डुबकी लगाई। उन्होंने सोने की कुल्हाड़ी निकालकर लकड़हारे से पूछा, “क्या यह तुम्हारी है?” लकड़हारे ने तुरंत कहा, “नहीं महाराज, यह मेरी नहीं है।” फिर देवता ने चांदी की कुल्हाड़ी दिखाई, लकड़हारे ने फिर मना कर दिया। अंत में देवता ने उसकी लोहे की कुल्हाड़ी निकाली।
लकड़हारा खुश हो गया और बोला, “हाँ, महाराज, यही मेरी कुल्हाड़ी है।” देवता उसकी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुए और उसे तीनों कुल्हाड़ियाँ इनाम में दे दीं। लकड़हारा देवता को धन्यवाद कहकर घर लौट आया। अब वह और उसका परिवार अच्छे से जीवन यापन करने लगा।
गाँव में यह बात फैल गई और सब उसकी ईमानदारी की प्रशंसा करने लगे। यह कहानी सबके लिए एक उदाहरण बन गई — कि सच्चाई और ईमानदारी का फल हमेशा अच्छा होता है, भले ही परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
सीख: सच्चाई और ईमानदारी हमेशा जीतती है और उसका फल मीठा होता है।
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