बहुत समय पहले विद्यानगर नामक नगर में दो ब्राह्मण रहते थे — एक वृद्ध ब्राह्मण वेंकट भट्ट और एक युवा ब्राह्मण माधव। दोनों ने एक साथ तीर्थ यात्रा पर निकलने का निश्चय किया। वेंकट भट्ट वृद्ध थे, इसलिए माधव बड़े प्रेम और नम्रता से उनकी सेवा करते हुए उन्हें पवित्र स्थलों पर ले गया। उन्होंने गया, काशी, प्रयाग और अंत में वृंदावन धाम की यात्रा की।
वृंदावन की पवित्र भूमि में पहुँचकर दोनों ब्राह्मण श्रीकृष्ण के दिव्य लीला स्थलों को देखकर भावविभोर हो गए। उनके मुख से प्रेम से निकला — “जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन! श्री गोविंद, गोपीनाथ, मदनमोहन की जय!” प्रसाद ग्रहण करते हुए वृद्ध ब्राह्मण बोले, “माधव! मैं बहुत कृतज्ञ हूँ कि तुम मुझे यहाँ तक लाए। यह अवसर मेरे लिए अमूल्य है।” माधव ने विनम्रता से कहा, “हे पूज्य ब्राह्मण! यह सब गोपालजी की इच्छा थी। कोई भी उनके आदेश के बिना वृंदावन नहीं आ सकता।”
🙏 एक दिव्य वचन
वृद्ध ब्राह्मण माधव की सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले, “माधव, मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे दामाद बनो और मेरी बेटी से विवाह करो।” माधव ने विनम्रता से कहा, “हे पूज्यवर, मैं योग्य नहीं हूँ। आपकी कृपा ही मेरे लिए पर्याप्त है।” लेकिन वृद्ध ब्राह्मण ने आग्रह किया और कहा, “तो आओ, हम यह वचन श्री गोपालजी के सामने दें।” उन्होंने गोपालजी के समक्ष कहा, “हे प्रभु, मैं अपनी बेटी का विवाह माधव से करने का वचन देता हूँ। आप इस वचन के साक्षी बनिए।” माधव ने प्रार्थना की, “हे प्रभु, मैं केवल यह चाहता हूँ कि यह ब्राह्मण अपने वचन से विचलित न हों। यदि ऐसा समय आए, तो आप स्वयं साक्षी बनकर उनकी रक्षा करें।”
🏠 वापस विद्यानगर में
दोनों ब्राह्मण यात्रा से लौट आए। परंतु जैसा कि माधव ने कहा था, वृद्ध ब्राह्मण का परिवार इस विवाह के लिए तैयार नहीं हुआ। उनके पुत्रों ने कहा, “यदि बहन की शादी माधव से हुई, तो हम मर जाएंगे।” बेबस होकर वृद्ध ब्राह्मण बोले, “मैंने वचन तो दिया था, पर परिवार आत्महत्या कर लेगा।” उनके पुत्रों ने कहा, “बस कह दो कि तुम्हें याद नहीं कि तुमने कोई ऐसा वचन दिया था।”
⚖️ सभा में विवाद
माधव ने सभी लोगों के सामने कहा, “इस ब्राह्मण ने मुझसे अपनी बेटी का वचन दिया था।” परंतु वृद्ध ब्राह्मण ने कहा, “मुझे याद नहीं।” उनके पुत्र बोले, “यह झूठा है! इसने हमारे धन पर नज़र रखी और झूठा आरोप लगाया।” सभा के लोग उलझ गए। तब माधव ने कहा, “यदि आप कहते हैं कि मैंने झूठ कहा है, तो मैं श्री गोपालजी को साक्षी बनाकर लाऊँगा।” लोग हँस पड़े, “यदि गोपाल स्वयं चलकर यहाँ आए, तो हम मान लेंगे।” माधव ने सबके सामने यह वचन लिखवाया और कहा, “आप सब साक्षी रहिए, अब गोपालजी स्वयं आएँगे।”
🌺 गोपाल का चमत्कार
माधव फिर वृंदावन लौट आए और श्री गोपालजी के चरणों में गिरकर बोले, “हे प्रभु, धर्म की रक्षा के लिए साक्षी बनिए। आप सर्वव्यापी हैं, हर कण में हैं, तो क्या आप स्वयं नहीं आ सकते?” श्री गोपाल मुस्कुराए, “माधव, तुम्हारी भक्ति ने मुझे प्रसन्न कर दिया है। जो मुझे पत्थर मानते हैं, मैं उनके लिए पत्थर हूँ; पर जिन्होंने मुझे जीवित समझा, उनके लिए मैं जीवित हूँ।” गोपाल बोले, “मैं तुम्हारे साथ चलूँगा, पर एक शर्त है — तुम पीछे मुड़कर नहीं देखोगे। जहाँ तुमने देखा, मैं वहीं रुक जाऊँगा।”
🚶♂️ चलते-चलते चमत्कार
माधव रोज़ गोपालजी के लिए एक किलो चावल अर्पण करते हुए आगे बढ़ते रहे। उनके पायल की मधुर झंकार से उन्हें पता चलता कि गोपाल पीछे आ रहे हैं। लेकिन जब वे विद्यानगर के पास पहुँचे, तो झंकार की आवाज़ बंद हो गई। माधव ने पीछे मुड़कर देखा — गोपाल वहीं खड़े मुस्कुरा रहे थे। गोपाल बोले, “माधव, मैं अब यहीं रहूँगा। तुम गाँववालों को बुलाओ, मैं स्वयं साक्षी दूँगा।” माधव की आँखों से आँसू बह निकले। भगवान स्वयं अपने भक्त के धर्म की रक्षा के लिए वृंदावन से चलकर आए!
📖 इस कथा से शिक्षा
- सच्चे भक्त की प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
- भगवान अपने भक्तों के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं।
- सत्य और धर्म की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं।
🙏 श्री साक्षी गोपाल की जय! जय श्रीकृष्ण! 🙏
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