एक प्यारी नैतिक कहानी जिसमें बच्चों को सिखाया गया है कि दया, सच्चाई और प्रेम ही जीवन का असली गहना है।
एक छोटे से गाँव में अंश नाम का एक 7 साल का बच्चा अपनी दादी माँ के साथ रहता था। उसके माता-पिता शहर में नौकरी करते थे और अंश गर्मियों की छुट्टियों में गाँव आया था। अंश बहुत चंचल और बातूनी था, लेकिन कभी-कभी थोड़ा ज़िद्दी भी हो जाता था।
दादी माँ बहुत शांत, समझदार और कहानियों की खज़ाना थीं। हर रात जब अंश बिस्तर पर लेटता, दादी माँ उसकी तकिया ठीक करतीं, उसके माथे पर प्यार से हाथ फेरतीं और फिर धीरे-धीरे कहानियाँ सुनाना शुरू कर देतीं।
एक रात अंश ने कहा, “दादी माँ, मुझे बताओ कि अच्छाई का इनाम क्या होता है?” दादी माँ मुस्कुराईं और बोलीं, “बेटा, सुनो एक कहानी जो तुम्हारे सवाल का जवाब देगी।”
✨ कहानी: एक सुनहरी दिल वाली गुड़िया
बहुत समय पहले एक छोटी सी बच्ची थी – रिमझिम, जो अपनी दादी माँ के साथ रहती थी। एक दिन गाँव में मेला लगा, और रिमझिम को वहाँ एक चमचमाती गुड़िया दिखी। लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे।
रास्ते में उसे एक बूढ़ी अम्मा दिखीं, जो पानी के मटके के साथ बैठी थीं। रिमझिम ने तुरंत मटका पकड़कर उन्हें घर तक पहुँचाया। बूढ़ी अम्मा ने उसे आशीर्वाद दिया और कुछ पैसे दिए।
रिमझिम उन पैसों से गुड़िया खरीद सकती थी, लेकिन उसने रास्ते में एक घायल कुत्ते को देखा और पैसे उसकी दवाई में खर्च कर दिए। अगले दिन मेले में दुकानवाले ने रिमझिम को वही गुड़िया उपहार में दे दी — क्योंकि उसने देखा था कि कैसे रिमझिम ने मदद की थी।
कहानी सुनकर अंश की आँखें चमक उठीं। उसने दादी माँ को गले लगाते हुए कहा, “अब मैं भी दूसरों की मदद करूँगा, बिना इनाम की उम्मीद किए।”
📚 भाग 2: दादी की सीख
अगले दिन गाँव में बिजली चली गई, और अंश ने दादी से पूछा, “अब क्या करेंगे?” दादी ने मोमबत्ती जलाई और कहा, “कभी-कभी अंधेरा भी ज़रूरी होता है ताकि हम खुद रोशनी बन सकें।”
फिर उन्होंने अंश को सिखाया कि कैसे दिए से दीया जलाना है, कैसे छोटी-छोटी जिम्मेदारियाँ निभाकर बड़ा बना जा सकता है।
रात को अंश ने बिना कहे रसोई साफ की, अपने कपड़े तह करके रखे और दादी माँ के लिए दूध भी गरम कर लाया। दादी माँ मुस्कुराईं और बोलीं, “बेटा, तू सच में समझदार बनता जा रहा है।”
अंश धीरे-धीरे बदलने लगा, अब वो दूसरों की मदद करता, अपने दोस्तों के साथ मिलकर खेलता और किसी पर हँसता नहीं था। गाँव में सब उसकी तारीफ करते थे।
सीख: जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो अच्छाई हमें अनजाने में ही इनाम देती है।
दूसरी सीख: समझदारी उम्र से नहीं, संस्कारों से आती है।
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