गाँव में गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं और अंश अब पहले से ज्यादा समझदार हो गया था। दादी माँ की कहानियों ने उसमें आत्मविश्वास और आदर्शों की नींव मजबूत कर दी थी।
एक सुबह अंश ने खेतों में मजदूरी करते अपने चाचा को देखा। वह बहुत थक गए थे। अंश ने दादी माँ से पूछा, “क्या चाचा जी की मदद करने से मुझे कुछ मिलेगा?”
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हर मेहनत का फल मिलता है बेटा, लेकिन वो पैसा नहीं – अनुभव, आत्मसम्मान और खुशी हो सकती है।”
🌾 अंश की मेहनत
अंश ने अगले दिन खुद सुबह 5 बजे उठकर खेत में चाचा के साथ काम किया। गर्मी, पसीना, कीचड़ – सब झेला। शाम को चाचा ने उसे ₹50 देने चाहे, लेकिन अंश ने मना कर दिया।
“मुझे सिर्फ सीख मिली है,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।
सीख: मेहनत हमेशा सिखाती है – चाहे वो छोटी हो या बड़ी।
🧺 आत्मनिर्भरता की शुरुआत
एक और दिन अंश ने अपने पुराने खिलौनों को साफ किया और गाँव के बच्चों को दे दिए। कुछ बच्चों ने कहा, “ये तो पुराने हैं।”
दादी माँ ने समझाया, “किसी चीज़ की कीमत उसके नएपन से नहीं, उपयोग से होती है।”
अंश ने वही खिलौने से नए गेम बनाए और सबके साथ खेलने लगा। सब बच्चे खुश हुए और अब वे भी अपने पुराने खिलौनों की देखभाल करने लगे।
सीख: आत्मनिर्भरता छोटे कामों से शुरू होती है – और बड़ी आदत बन जाती है।
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यह कहानी बच्चों, माता-पिता और शिक्षकों के लिए प्रेरणादायक प्रयास है।
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